,रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि अयोध्या में जो विवादित स्थल पर हिंदू पक्षकारों को जो जमीन दी गई है, उसे रामजन्मभूमि न्यास को सौंप दिया जाए. और गैर विवादित जमीन को भारत सरकार को सौंप दिया जाए. बता दें कि आज ही सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर सुनवाई होनी थी, लेकिन जस्टिस बोबडे के छुट्टी पर जाने की वजह से सुनवाई टल गई.
मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अयोध्या में हिंदू पक्षकारों को जो हिस्सा दिया गया है, वह रामजन्मभूमि न्यास को दे दिया जाए. जबकि 2.77 एकड़ भूमि का कुछ हिस्सा भारत सरकार को लौटा दिया जाए.
गौरतलब है कि अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद के आसपास की करीब 70 एकड़ जमीन केंद्र सरकार के पास है. इसमें से 2.77 एकड़ की जमीन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था. जिस भूमि पर विवाद है वह जमीन 0.313 एकड़ ही है. सरकार का कहना है कि इस जमीन को छोड़कर बाकी जमीन भारत सरकार को सौंप दी जाए. मोदी सरकार का कहना है कि जिस जमीन पर विवाद नहीं है उसे वापस सौंपा जाए.
गौरतलब है कि 29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर मामले की सुनवाई होनी थी, लेकिन वह टल गई. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई पांच जजों की पीठ कर रही है. जिसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस एस. ए. बोबडे और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ शामिल हैं.
कैसे हुआ था जमीन का बंटवारा?
आपको बता दें कि 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या विवाद को लेकर फैसला सुनाया था. जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस यू खान और जस्टिस डी वी शर्मा की बेंच ने अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांट दिया था.जिस जमीन पर राम लला विराजमान हैं उसे हिंदू महासभा, दूसरे हिस्से को निर्मोही अखाड़े और तीसरे हिस्से को सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया गया था.
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर निर्माण का मुद्दा गर्माता जा रहा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवस संघ, विश्व हिंदू परिषद समेत उनके अन्य संगठनों के द्वारा लगातार मोदी सरकार पर मंदिर निर्माण के लिए दबाव बनाया जा रहा है.