चुनावी वादे में मुफ्त की रेवड़ियां एक जटिल समस्या – सुप्रीमकोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने जनता के पैसे खर्च करने के सही तरीके को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि मुफ्त की रेवडि़यों के चुनावी वादों का मुद्दा जटिल होता जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कुछ कहते हैं पैसा बर्बाद हो रहा तो कुछ कहते हैं यह जनकल्याण की योजनाएं हैं कहा, सवाल यह है कि सही वादे क्या हैं, क्या न्यूनतम आवश्यक यूनिट बिजली को मुफ्त की रेवडि़यां कहा जाएगा मतदाता मुफ्त की रेवड़ियां नहीं चाहते, आप उन्हें अवसर दीजिए वे गरिमापूर्ण तरीके से आय अर्जित करेंगे वादे चुनाव जीतने का अकेला आधार नहीं होते, ऐसी भी पार्टियां हैं जो ज्यादा वादे करके भी बुरी तरह चुनाव हार गईं अगर समाज कल्याण के बारे में हमारी समझ हर चीज को मुफ्त बांटना है तो ये अपरिपक्व समझ है। – तुषार मेहता, सालिसिटर जनरलमुफ्त इलेक्ट्रानिक वस्तुओं को जनकल्याण कहा जा सकता है..?
सर्वोच्च अदालत ने यह भी पूछा कि क्या उपभोक्ता उत्पादों, मुफ्त इलेक्ट्रानिक वस्तुओं को जनकल्याण कहा जा सकता है। अभी चिंता यह है कि जनता का पैसा खर्च करने का सही तरीका क्या है। कुछ लोग कहते हैं कि पैसा बर्बाद हो रहा है तो कुछ का कहना है कि यह जनकल्याण है। सभी लोग अपने सुझाव दें। इस पर बहस और चर्चा के बाद निर्णय होगा। कोर्ट ने सभी पक्षों को 20 अगस्त तक सुझाव देने का निर्देश देते हुए मामले को 23 अगस्त को फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया।
ये टिप्पणियां और निर्देश प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा, जस्टिस जेके महेश्वरी और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए। पीठ ने कहा कि मुफ्त उपहार और जनकल्याण की योजनाएं भिन्न हैं। यह देखना होगा कि किसे मुफ्त रेवडि़यां कहा जाएगा और किसे कल्याणकारी योजना।
पीठ ने मनरेगा का उदाहरण देते हुए कहा कि मतदाता मुफ्त की रेवड़ियां नहीं चाहते। आप उन्हें अवसर दीजिए वे गरिमापूर्ण तरीके से आय अर्जित करेंगे। मुफ्त में आभूषण, टीवी और उपभोक्ता इलेक्ट्रानिक सामान देने और वास्तविक कल्याणकारी वादों में अंतर होना चाहिए। पेशेवर पाठ्यक्रमों के लिए मुफ्त कोचिंग के वादे की तुलना मुफ्त में सामान देने के वादे से नहीं की जा सकती।
पीठ ने कहा कि मुफ्त की रेवड़ियों और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओं के बीच भ्रम नहीं होना चाहिए। साथ ही कहा, ‘आपमें से कुछ ने सही बिंदु उठाया है कि संविधान का अनुच्छेद-38(2) कहता है कि राज्य न सिर्फ व्यक्तियों बल्कि लोगों के समूहों की आय में असमानता कम करने के लिए काम करेंगे और स्तर, सुविधाओं व अवसरों में असमानताएं खत्म करने का प्रयास करेंगे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि आप राजनीतिक दल या व्यक्ति को सत्ता में आने पर संवैधानिक जनादेश पूरा करने के उद्देश्य से किया गया वादा करने से नहीं रोक सकते। सवाल यह है कि वास्तव में वैध वादा क्या है। क्या हम छोटे और सीमांत किसानों को बिजली, बीजों और उर्वरकों पर सब्सिडी के वादे को मुफ्त की रेवडि़यां कह सकते हैं?’वादे चुनाव जीतने का आधार नहीं
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा किए गए वादे चुनाव जीतने का अकेला आधार नहीं होते। ऐसी भी पार्टियों के उदाहरण हैं जिन्होंने दूसरी पार्टियों से ज्यादा वादे किए और बुरी तरह चुनाव हार गईं।
इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई गुरुवार तक टालने का अनुरोध करते हुए कहा कि पिछली सुनवाई पर कपिल सिब्बल ने सुझाव देने की बात कही थी, उनके सुझाव आने के बाद गुरुवार को सुनवाई कर ली जाए।विशेषज्ञ समिति गठित करने का सुझाव
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने सुनवाई टालने का विरोध करते हुए कहा कि पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने विशेषज्ञ समिति गठित करने के बारे में पक्षकारों से सुझाव मांगे थे। याचिकाकर्ता ने सुझाव दाखिल कर दिए हैं और विशेषज्ञ समिति गठित करने के पक्ष में है। यह समिति मुफ्त रेवडि़यों के मुद्दे पर विचार करे और तय करे कि क्या मुफ्त रेवडि़यां मानी जाएंगी और क्या नहीं।
उनकी दलीलों पर पीठ ने कहा कि उनका पक्ष सुन लिया है, अन्य लोगों का क्या कहना है उसे भी सुना जाएगा।भारत को समाजवादी से पूंजीवादी देश में बदलने की कोशिश
द्रमुक की ओर से वरिष्ठ वकील पी. विल्सन ने कहा कि उन्होंने अर्जी दाखिल की है जिसमें पक्षकार बनाने का अनुरोध किया है। विल्सन ने कहा कि जनहित याचिकाकर्ता भारत को समाजवादी से पूंजीवादी देश में बदलने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि वह मुफ्त रेवडि़यों पर विचार के लिए समिति गठित किए जाने का विरोध करते हैं।
उनकी दलील पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आप अपने विचार दे दें, लेकिन आप यह नहीं कह सकते कि कोर्ट इस पर सुनवाई न करे। सालिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि अगर समाज कल्याण के बारे में हमारी समझ हर चीज को मुफ्त बांटना है तो यह अपरिपक्व समझ है।सुझाव, आपत्तियां और लिखित दलीलें दाखिल करने के निर्देश
याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा कि द्रमुक ने अपनी अर्जी की प्रति उन्हें नहीं दी है जबकि मीडिया में वह प्रकाशित हो गई है। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इसका प्रचार के लिए उपयोग न करें और सुनिश्चित करें कि पक्षकारों को आवेदन की प्रतियां मिलें। कोर्ट ने सभी पक्षकारों को 20 अगस्त की शाम तक सुझाव, आपत्तियां और लिखित दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया।